क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेल्फ-अवेयर हो सकती है?

जब हम बात करते हैं की रोबोट्स सेल्फ-अवेयर हो गए तभी उन्हें असली AI कहा जा सकता है,
तो उसका मतलब क्या है ?

सेल्फ-अवेयरनेस यानी के ये पता होना के "हम हैं"। 
जैसे की हमें पता है की हम इंसान हैं, और ये भी पता है की बायोलॉजिकल स्ट्रक्चर हैं, और ये भी पता है की क्या क्या ऑर्गन्स हैं हमारे, किन किन चीज़ों से उन्हें नुक्सान हो सकता है और कैसे हम "मर" सकते हैं। 

कैसे मर सकते हैं में "मर सकते हैं" एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट है। 
किसी भी चीज़ के एक जीवित एंटिटी कहलाने के लिए ये जरूरी है की वो ख़त्म हो सकता हो। 
क्यूंकि जीवित होना एक स्टेट है जिसमे इंसान है, दूसरी स्टेट है मरा हुआ होना, तो जो मर ही नहीं सकता वो जीवित भी नहीं हो सकता !
जैसे की क्या एक लैपटॉप मर सकता है ?
नहीं मर सकता, 
उसके एक एक पार्ट को बदलकर उसे वापस चलाया जा सकता है हमेशा के लिए। 
लेकिन इंसान के साथ ऐसा नहीं है। 
इसलिए वो एक सचेत या जागरूक या "एक" चीज़ मानी जाती है। 

कम्प्यूटर्स के साथ ऐसा नहीं है,
एक हार्डवेयर के खराब होने पर उसे रिप्लेस किया जा सकता है, सॉफ्टवेयर में करप्शन पर सॉफ्टवेयर ठीक किया जा सकता है, या सॉफ्टवेयर ही Replace किया जा सकता है। 

साइंटिस्ट ये मानते हैं की जो भी बॉडी "सब्जेक्टिव एक्सपीरियंस" कर सकती है वो सेल्फ-अवेयर है। 
यानी के अगर आपको पता है की आप आप हो, तो आप सेल्फ अवेयर हो, और इसमें एक और इम्पोर्टेन्ट एलिमेंट है की आप मर सकते हो, इसलिए फिर आप अपने आपको बचाने की भी कोशिश करोगे खात्मे से, अपने आपको सुधारने की भी कोशिश करोगे, अपने आपको ताकतवर करने की भी कोशिश करोगे, और उसी से समाज का निर्माण करोगे क्यूंकि समाज आपको ताकत देगा सिक्योरिटी देगा। आप बहुत सारा बोझ अपने ऊपर डाल लोगे इस सर्वाइव करने जुगत में और वो सब जो आप जोड़ लोगे अपने से वो "आपका" हो जाएगा। 
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मशीनों में ऐसा नहीं है अभी तक, 
किसी लैपटॉप को नहीं पता के वो लैपटॉप है, ना किसी मोबाइल को पता है की वो मोबाइल है, ना किसी रोबोट को पता है की वो रोबोट है। 
बेशक आज हमारे पास बहुत ही डीप में लर्न करने वाले लर्निंग मशीन हैं, सेल्फ ड्राइविंग कार्स हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं है की वो ये हैं !
सुपरकम्प्यूटर्स तक हैं लेकिन उन्हें पता नहीं है की वो सुपरकम्प्यूटर् है। 
और जबतक पता नहीं चल जाता तब तक वो एक डम्ब मशीन है चाहे कितनी भी ताकतवर हो, या हमसे कितनी भी बेहतर हो मैथ्स, Computation, Problem Solving, या नॉलेज में । 
इसपर अल्बर्ट आइंस्टीन का फेमस जवाब भी है, जब उनसे पुछा गया के एजुकेशन क्यों जरूरी है, जबकि ज्ञान तो सब किताबों में है ही, जब जरूरत हो तब देख लो, और आज के जमाने में तो गूगल है सारा ज्ञान यहां पे सर्च किया जा सकता है। 
आइंस्टीन ने जवाब दिया था के 
एजुकेशन ज्ञान को अर्जित करने के लिए नहीं दी जाती, एजुकेशन दिमाग को सोचने के लिए ट्रैन करने के लिए दी जाती है। 

एक हिंदी भी कहावत है की "रटंत विद्या फलंत नाही" यानी ज्ञान को रट लेने का कोई फायदा नहीं है। 
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ये सब यही बताते हैं की असल चीज़ जो इंसान को इंसान या इंटेलीजेंट या सेल्फ अवेयर बनाती है वो उसका सोचना है। नाकि उसका इतिहास की बातें याद रखना, नाही गणित के सवाल हल कर पाना, या शतरंज खेल पाना, या कुछ भी और दिमागी काम कर पाना। 
मशीन बस ये ही नहीं कर सकती। वो सोच नहीं सकती, क्यूंकि वो सेल्फ अवेयर ही नहीं है, वो "एक" एंटिटी ही नहीं है। 
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अच्छा मजे की बात पता है क्या है, 
इंसान शुरू से सेल्फ अवेयर नहीं था। 
हमारे कुछ न्यूरॉन्स हैं जो सेल्फ अवेयर हो गए, अभी भी कुछ ही न्यूरॉन्स की स्पेशल फार्मेशन है जो हमें सेल्फ अवेयर बनाती है। 
एक फिल्म आपने देखि होगी "प्लेनेट ऑफ़ दा apes" जिसमे बन्दर किन्ही Scientific कारणों से सेल्फ-अवेयर हो जाते हैं,
ये हो सकता है, क्यूंकि जो न्यूरॉन्स की फार्मेशन हमें सेल्फ-अवेयर बना सकती है वो उन्हें भी बना सकती है,
और उस से भी ज्यादा मजेदार बात ये है की ये फार्मेशन बदलने पर हम भी सेल्फ अवेयरनेस से बाहर हो सकते हैं !

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